Monday 1 August 2016

रोज़ शाम की बात !


दिल की बात, दिल ही जाने,
बस दिल्लगी पे उतर आता है, 
नज़र फिराए, नज़र चुराए,
नज़र घुमाए, नज़र मे आए,
ना किसि को नज़र  आता है 
ना किसी कि नज़र को भाता है I
तनहा वापस फिर आता है I

ठेस लगा जब यह देखा,  
बेज़ुबान बहरा बयान कर लिया,
हसीन सा पैगाम नज़र करा दिया, 
शाम को एक हसीन तोहफा दिया  
इधर ना जुबा साथ दिया  
ना जवानी कुछ  बोल पाया I 

चल दिए फिर से ख़ामोशी ओढ़े,
आँखों में नमीं, दिल में मायूसी ओढ़े I 

हर बार सोचते हैं की आज तो कह ही देंगे 
बस बात दिल की आज खोल ही देंगे
पर ज़ुबान कमबख्त हिलने से मना करती है I 

कौन जाने वो दिन कब आएगा 
जब ये मुख उनसे कुछ बोल पायेगा 
खैर जब तक कहना  बाक़ी है 
समझेंगे उनका हमसे मिलना ही बाक़ी है I

रचना : प्रशांत 

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