Sunday 23 August 2015

आसमानके छत पे , तू फिर घर तो बसा ...

Pic Courtesy: www.mettalegal.com



क्यूँ कहे दिल के, तू दिल की सुन , 
एक बार फिर अजनबी बन, और दिल की सुन , 
भले हो उम्र के फ़ासले, तो कोई बात नहीं ,  
कहाँ खामोश उम्र से,  बने कोई बात नयी 
कहाँ खामोश उम्र से, बने कोई रात नयी I 

थोड़ी सी याद कर ले , गुज़रे मुहब्बत के नाते,  
मन की चदर को ओढ़, जी लम्हों के रिश्ते,  
मोती आंसू के किरणो से , तू तारों को सजा , 
आसमानके छत पे , तू फिर घर तो बसा I

रचना : प्रशांत 

No comments:

Post a Comment