![]() |
चित्र साभार :https://pixabay.com/en/eyes-woman-fashion-beautiful-iris-586849/ |
नज़रों से इनायत करने वाले,
यूँ खामोश क्यूँ रहते हो,
जब नज़र की ज़ुबाँ,
बेआबरू नज़रों को नज़राना हो I
क्यूँ इन खामोशियों को नहीं करते,
रिश्तों के नाम से आज़ाद,
क्यूँ ये कसम देते हो,
के ख़त्म करो नज़रों की ये फरियादI
और फिर क्यूँ हक़ की नज़रों से,
उलफत के फ़िज़ा बिखरते हो,
जब आहट दिल ऐ मशरूफ,
नज़राना बे-खत ख़तम हो I
रचना : प्रशांत
No comments:
Post a Comment