यह कोर्पोरेट महफ़िल है जनाब,
जहाँ लीडर डंका बजाता है,
उनका हे दुनिया, चाहने से है दुनिया,
याद बार बार दिलाता है I
जब तब महफ़िल जमाए, बुलाते हैं
कभी खत, बे-खत बुलाते हैं
तारीफ़के दो बोल, भूल जाते हैं
दोहराते है वो नाम और काम
नये गुमनाम, क्या करे सब काम ??
महफूज़ मेरे आका, मेरे हुज़ूर,
भरे आरमान, और भरे इनसे,
दिल-ए-मक़सूद, दिल-ए-फरमान,
इनसे बने पहचान , मेरे ईमान I
कहानी बन जाए, इशारा ये आए,
शाबाशी के फूल तुमसे बरस जाए ,
महफ़िल-ए-काबिल महफ़िल को तरसे,
एक और प्यादा लीडर बन जाए ,
एक और गुमनाम, चुप रह जाए ई
रचना : प्रशांत

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