Monday, 13 July 2015

कुच्छ घाओ लगे तो

कुच्छ घाओ लगे तो,
तो लगे की जिंदा है जहाँ,
कहीं एक टुकड़े से नाता ना बने,
तो कहीं जुड़े पूरे जहाँ से जहाँ I

ना मुझे यह था पता,
के जख़्मो से भी निकलती है दुआ,
हम ज़रूर संभल जाएँगे ऐसे,
जब ये आह सबका हुआ I

अब जिए जैसे साकी हो जिंदा,
आशिक़ो का ताज़ जैसे फिदा,
हाँ मैं हाँ मदहोश, ये था बाकी,
तनहा रहगुजर साकी है बाकी I

रचना: प्रशांत 

2 comments:

  1. अब जिए जैसे साकी हो जिंदा,
    आशिक़ो का ताज़ जैसे फिदा,
    हाँ मैं हाँ मदहोश, ये था बाकी,
    तनहा रहगुजर साकी है बाकी I
    सुंदर भावों से सजी रचना ! बेहतरीन काव्य

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    1. धन्यवाद योगी सारस्वत जी

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