कुच्छ घाओ लगे तो,
तो लगे की जिंदा है जहाँ,
कहीं एक टुकड़े से नाता ना बने,
तो कहीं जुड़े पूरे जहाँ से जहाँ I
ना मुझे यह था पता,
के जख़्मो से भी निकलती है दुआ,
हम ज़रूर संभल जाएँगे ऐसे,
जब ये आह सबका हुआ I
अब जिए जैसे साकी हो जिंदा,
आशिक़ो का ताज़ जैसे फिदा,
हाँ मैं हाँ मदहोश, ये था बाकी,
तनहा रहगुजर साकी है बाकी I
रचना: प्रशांत
तो लगे की जिंदा है जहाँ,
कहीं एक टुकड़े से नाता ना बने,
तो कहीं जुड़े पूरे जहाँ से जहाँ I
ना मुझे यह था पता,
के जख़्मो से भी निकलती है दुआ,
हम ज़रूर संभल जाएँगे ऐसे,
जब ये आह सबका हुआ I
अब जिए जैसे साकी हो जिंदा,
आशिक़ो का ताज़ जैसे फिदा,
हाँ मैं हाँ मदहोश, ये था बाकी,
तनहा रहगुजर साकी है बाकी I
रचना: प्रशांत
अब जिए जैसे साकी हो जिंदा,
ReplyDeleteआशिक़ो का ताज़ जैसे फिदा,
हाँ मैं हाँ मदहोश, ये था बाकी,
तनहा रहगुजर साकी है बाकी I
सुंदर भावों से सजी रचना ! बेहतरीन काव्य
धन्यवाद योगी सारस्वत जी
Delete