Monday 24 October 2016

फलसफा यही ज़िन्दगी का !





ख़तम सही हो ???
या हर बार शुरुआत नयी हो ???
तुझे पढ़ना मुश्किल ए ज़िंदगी,
समय बीत जाए, वो समय ना आए,
ना काया उमर पाए, साँस आए जाए,
ज़िंदगी तेरे पहचान क्यू छोटा होजाए,
बस तेरी कमाई आँकड़े मे डूब जाए....,
हर पल जियुं, या कल के पल सवारूं,
यह तय  हो जाना, क्यू हो मुश्किल,
जब ना यह साँस महफूज़ होगा,
काया से , तुझसे आज़ादी लेगा,
क्या होगा, महसूस ख़ालीपन होगा,
खाली जाएगा, खाली पल ले जाएगा..I

रचना : प्रशांत

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