Wednesday, 29 March 2017

दर्पण जो मिलाई आँख...





दर्पण जो मिलाई आँख
एक अर्मा जाहिर दिखे
जवा ज़ुस्तजु था
फरियाद आनसूनी 
कुछ इस तराह लिखे....

एक तसबीर ऐसा हो
ख्वाब हो मदहोश हो
दिल-ए आबोस हूस्न रहे
इज़ाफ़ा आईने की किस्मत 
और दीवाना जमाना हो I

रचना :प्रशांत 

1 comment:

  1. बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ। कमाल का वर्णन वाह !

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