Sunday 7 December 2014

आज फिर खामोश सी ये शाम गयी...

आज फिर खामोश सी ये शाम गयी,
सारे सवाले लिए फिर से  लौट गयी,
आज फिर खामोश सी  ये शाम गयी I 

कितने अरमान को समेटे हुए,
आए थे , दर पे तेरे हँसते हुए ,
क्या हुआ , क्यूँ ये हुआ,
रुक ना सके, ना फिर वो,
दो पल के लिये I 
आज फिर खामोश  सी यह शाम गयी,
सारे सवाल लिए फिर से लौट गयी I 

यू तो समझे , के तुम्हिहो बस,
दिलों और जान की कशिश  ...,
अशिकी साथ चली, और थम सी गयी,
अंजाने राहोमें, ये मुड़ तो गये,
आज फिर खामोशिसी यह शाम गयी I 

सारे सवाल लिए फिर से लौट गयी,
आज फिर खामोशी-सी यह शाम गयी I 
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रचना : प्रशांत 

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