आज फिर खामोश सी ये शाम गयी,
सारे सवाले लिए फिर से लौट गयी,
आज फिर खामोश सी ये शाम गयी I
कितने अरमान को समेटे हुए,
आए थे , दर पे तेरे हँसते हुए ,
क्या हुआ , क्यूँ ये हुआ,
रुक ना सके, ना फिर वो,
दो पल के लिये I
आज फिर खामोश सी यह शाम गयी,
सारे सवाल लिए फिर से लौट गयी I
यू तो समझे , के तुम्हिहो बस,
दिलों और जान की कशिश ...,
अशिकी साथ चली, और थम सी गयी,
अंजाने राहोमें, ये मुड़ तो गये,
आज फिर खामोशिसी यह शाम गयी I
सारे सवाल लिए फिर से लौट गयी,
आज फिर खामोशी-सी यह शाम गयी I
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रचना : प्रशांत
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