Wednesday 25 March 2015

अंजान राहों से आज हम गुज़रे हैं...




चित्र साभार :  http://pixabay.com/en/bridge-pair-couple-man-woman-walk-525615/




अंजान राहों  से  आज हम गुज़रे हैं,
अपने कुछ ख़ास के संग,
रंग जमाए हुए,
उसके रंग में खुद को नहाये हुए I

उससे मिलने की तम्मना हीं है अब
मेरी हर ख्वाइश का सबब,
गर वो खो जाए मेरी आँखों के पैमाने से
तो  दफ़न कर देना मुझे महीनों में या रब I

उनकी आँखों के मयखानों में ,
ख़ुद को ख़ामोशी से सजाये हुए ,
हम चाहते हैं रहना ज़िंदा,
उनकी तस्वीर को मुहब्बत - ऐ-बेपनाही,
से दिल सजाये हुए,
हम चाहते हैं  डूबना उसकी मदहोश आँखों के समंदर में ऐसे,
जैसे उड़ता है खुले आसमान में कोई परिंदा I 

                                                                      रचना : प्रशांत

2 comments:

  1. क्या खूब लिखा है प्रशांत जी

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  2. धन्यवाद अलोक जी आपकी प्रशंशायुक्त शब्दों के लिए!

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