चित्र साभार :http://spiritualcleansing.org/wp-content/uploads/2015/12/Its-not-denial.-Im-just-selective-about-the-reality-I-accept..jpg
इतेफ़ाक़ से आईने के सामने खुदको जो पाया...
घबराया, क्या ये शीशे को भी नज़र लग गया..
सामने मेरे वो खड़ा, मुझे यू पेश किया .....
ना नज़र जवां था, ना जवां था साया I
दोष इन नज़रों को हम ना दे पाए,
आज भी ये हसीन तोहफे न कबूल करे ...
कहीं कहीं रुक जाए, पर थम ना जाए
आपने सपने को जकड़े, हक़ीक़त बताए
अब हम क्या करे,
नज़र छोड़, बाकी उम्र के आड़े चले..
तो नज़र बिचारा क्या करे I
अच्छा हुआ, ना शीशा देख पाए
ना ज़ुबानसे कुच्छ कह पाए...
तेरी नज़रोंसे तेरे परच्छाई तुझे दिख जाए ....
ज़ुबान बहके , ना माने,
तू कुछ और बयान कर जाए I
रचना: प्रशांत