Saturday 26 September 2015

एक शायर का खत जो आज मिला....




चित्र साभार : http://7-themes.com/6960794-bottle-letter.html

एक शायर का  खत जो आज मिला,
बड़े अदब से जो उसे खोला, तो ये पैगाम मिला,
कितने थे गम हरदम, जो उन्हे ले के चला
भर आया दिल , आंसूओ को पता भी ना चला I

काश  हम समझ  लेते, उन खतो से भला, 
दिल की बात जो लिखे, जो बार बार मिला, 
नासमझ थे जो न समझे, मुझे एक समझदार शायर मिला I 

यूँ हर शायरी से  ना लगा दिले सिलसिला,
वाह वाह की गूंज, बेपर्दे दफ़न क्यू मिला.
क्या वो  था इंसान, या  फ़रिश्ता,
यह उलझन आज है क्यूँ भला , 
जो कश्ती जाए डूब ,उसे  किनारे से क्या भला I

मुझसे वो खत और पढ़ना, हो ना पाया ,
पुरानी ज़ख़्म हो ख़त्म, आवाज़ आम पाया,
कोई दे ज़ख़्म पे मरहम,वो महफूज़ महफ़िल ना पाया,
जब जो वो भी उनसे मिला, 
तो वो खुश थे, की देर ही सही वो आन तो  मिला ,
खाली था खत, ख़त्म करूँ कैसे भला,
लफ़्ज़ों की जगह रूह था बिखरा 
और उनसे मिलने का एक अदद आसरा I 

रचना : प्रशांत 

Saturday 19 September 2015

क्यू लगे आज तनहा तनहा...



चित्र साभार : https://www.flickr.com/photos/davedugdale/5096953439

क्यू लगे आज तनहा तनहा,
ग़मे फुरसत मे, 
क्यू लगे आज तनहा तनहा,
सारे आम, जहाँ जाम ने दी पनाह 
क्यू लगे आज तनहा तनहा I

जिस शाम की रंग मे 
अकबरे शहंशाह  की ज़ुस्तजू थे आप,
आप की कमी, महफिले शाम हो ज़िक्र,
लगे आज वो महफ़िल तनहा तनहा,
जाम-ए-आतिश लगे तनहा तनहा,
उम्र की लिहाज, आपं सुनाए दास्तान,
मुद्दा'-ए साक़ि हम रहे मेह्फूज , 
बेनाम जीए तनहा तनहा 
अंजान बने , रोशन आप हुए
पर्दे का आशियाना हम जिए , 
जाम हो ख़त्म तनहा तनहा I

छोड़े हम एक प्याला आप के नाम
काँच की आगोश मे छोड़े दिल- ऐ-नादान 
तस्वीर  आपकी  झलके, मुस्कुरा के  बोले 
बेकसी-हा-ए-शब-ए-हिज्र , जो लिख ना पाए I

शीशे  मे ना देख परछाई, बेजुबान आप बोले,
ख़त्म खामोशी एक जाम-ए-लापता यू उतरे, 
ख़तम हो जाम-ए-शाम रंग ना बिखरे, 
तेरे तसबीर, तुझे छोड़े, शीशे  मे दिखे,
ख़त्म हो जन्नत की तलाश , 
शीशे में दिखे तुझसे मिलने की आस,
और जीने का विश्वास I 

रचना: प्रशांत 

Friday 4 September 2015

रहम दोस्तो रहम...



चित्र साभार : www.popsugar.com

रहम दोस्तो रहम,
बदल जाओ,
यह कसम ना दो ,
सियाही और सुराही कर अलग,
ये कसम ना दो I

सियाही और सुराही है  मेरी कमज़ोरी,
ये  नाम ना दो,
साक़ी हो बदनाम ,
ऐसे इल्ज़ाम ना दो I

बदल जा,
राह कर जुदा, यह रूह ना माने,
खामोश पानीके रंग, रूहहि जाने
ये कसम, ये रसम, दिल ना माने
रूह की राह , ये प्याला ही जाने I

खुदा हे महज़ूद, ये खुदा भी जाने,
नेक बंदे से संगत, ये जाम भी जाने I

खामोश ये ख़तम, रंगमंच हम से हम उतरे,
पल पल की फकीर, पल के पल में बिखरेंI

उम्मीद की किरणे इनसे दिखे,
हसीन क़त्ल भी इनसे दिखे,
ज़ीने की आरज़ू बार बार दिखे,
आगाज़ आज़ादी भी इनसे दिखे I

आवाज़ दे कर देखो,
हाज़िर महफ़िल हम होंगे,
कुछ पल की शाहेंशाह होंगे ,
भले गुलाम आपके होंगे ई

रचना: प्रशांत