मिट्टी मिटती नहीं
मौन सी विस्तृत बक्श पर
ज़मानों का इतिहास
लहू के अक्शरों में इसकी पन्नों पर है लिपिबद्ध
नन्हे पाँव जब चलने लगे डगमगाए,
मिट्टी कुछ कहती है धीरे से
एक और नई पीढ़ी आ गयी है मुझे सँवारने।
नई इमारतें बनेंगे , रस्ते खुलेंगे, दुकानें सजेंगे
और भी मेलें लगेंगे
लोग आते जाते रहेंगे मेरी रगंमंच की पुतला बन
कुछ देर हर्ष विषाद की छाया बन
सो जाएँगे फिर मेरी गोद में मिट्टी बन
पर समय चलता जाएगा
और मैं, न रोंऊगी ,न हँसूँगी
बस ज़िन्दगी का यह कारवाँ सजाती जाऊँगी।
एक हसीन कल्पना लिए मैं सिमट जाती हूँ कभी कभी,
कि एक दिन ऐसा आएगा
काल की गोद से कोई महान अात्मा
पाँव धरेगा धरती पर,
मिट्टी को समझेगा
दुल्हन सी उसे सजाएगा
विकसित हो जाएगा वन उपवन।
रचना: मीरा पाणिग्रही
मौन सी विस्तृत बक्श पर
ज़मानों का इतिहास
लहू के अक्शरों में इसकी पन्नों पर है लिपिबद्ध
नन्हे पाँव जब चलने लगे डगमगाए,
मिट्टी कुछ कहती है धीरे से
एक और नई पीढ़ी आ गयी है मुझे सँवारने।
नई इमारतें बनेंगे , रस्ते खुलेंगे, दुकानें सजेंगे
और भी मेलें लगेंगे
लोग आते जाते रहेंगे मेरी रगंमंच की पुतला बन
कुछ देर हर्ष विषाद की छाया बन
सो जाएँगे फिर मेरी गोद में मिट्टी बन
पर समय चलता जाएगा
और मैं, न रोंऊगी ,न हँसूँगी
बस ज़िन्दगी का यह कारवाँ सजाती जाऊँगी।
एक हसीन कल्पना लिए मैं सिमट जाती हूँ कभी कभी,
कि एक दिन ऐसा आएगा
काल की गोद से कोई महान अात्मा
पाँव धरेगा धरती पर,
मिट्टी को समझेगा
दुल्हन सी उसे सजाएगा
विकसित हो जाएगा वन उपवन।
रचना: मीरा पाणिग्रही
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