Friday 24 October 2014

समंदर के आगोश में...



चित्र साभार: http://www.verandabeach.com/


समंदर के आगोश में शाम था,
लबों के आगोश में ज़ाम थाI

एक नहीं था तो तू मेरे पास,
पर ज़िंदा था मेरी साँसों में तेरा एहसासI

उस शाम का एक अंजाम था,
पर ख़ुदा पे भी एक इल्ज़ाम थाI

शीशा था मेरे लबों के करीब,
पर तू था मुझसे जुदा... कुछ अजीबI

चाँद तारों के पास उनका आसमान था,
मेरी ख्वाइश था  तू पर तेरी नज़रों में एक फरमान थाI

ज़िन्दगी अगर तू मुझमें अभी भी है ज़िंदा ,
तो बता वो मुझसे बिछड़ जाए, क्या ऐसा मेरा गुनाह थाI

दोस्तों मेरा जिक्र जब भी करना तो,
कहना उसकी इबादत ही मेरा इनाम थाI

समंदर के आगोश में शाम था,
लबों के आगोश में ज़ाम थाI

रचना: प्रशांत पांडा 

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