Saturday 26 December 2015

हिसाब छोड़, थोड़ा जी ले !


                                                                             
इतनी फिकर किस बात की,
जो होना हे तेरे बस मे कहाँ, 
उम्र ना तेरा गुलाम,ना परछाई, 
जब ये कायनात तुम्हे ना अपनाये 
सलतनते अकबर कहाँ सुकून आए  I

हिसाब कर,पल पल ना तोड़,
इनाम कमा ले, ईमान ना छोड़, 
बेहिसाब पल पल तू जोड़, 
खुशियाँ बिखेर, रिश्तों में बिखर,
खुद को मोड़,  खुदा से जुड़ ई

रचना : प्रशांत 

3 comments:

  1. हिसाब कर,पल पल ना तोड़,
    इनाम कमा ले, ईमान ना छोड़,
    जिंदगी जिंदादिली का नाम है ! शानदार अभिव्यक्ति

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    1. धन्यवाद योगी सारस्वत जी!

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