Thursday, 27 August 2015

इश्क़ यू भरे बाज़ार मे ना उछालो...


चित्र साभार :http://allfaithcenter.org

इश्क़ यू भरे बाज़ार मे ना उछालो,
इंसानियत के कभी रिश्ता भी निभा लो,
बंद कमरे के अल्फाज़ को ज़ुबान ना दो
ख़ामोशी की तस्वीर है,इसे शीशे में मेहफ़ूज़ रहने दो  I

कोई आपसे भले ही रूठा हो,
कोई आपका भले हीं झूठा हो,
मौत के आगोश में हर एहसास डुबोते चलो,
अपने होने की परछाई मिटाते चलो ,

के इश्क़ सिर्फ ज़िदगी का नाम नहीं,
मौत में भी इश्क़ का रक़्स मिलते चलो I


रचना: प्रशांत 

Sunday, 23 August 2015

आसमानके छत पे , तू फिर घर तो बसा ...

Pic Courtesy: www.mettalegal.com



क्यूँ कहे दिल के, तू दिल की सुन , 
एक बार फिर अजनबी बन, और दिल की सुन , 
भले हो उम्र के फ़ासले, तो कोई बात नहीं ,  
कहाँ खामोश उम्र से,  बने कोई बात नयी 
कहाँ खामोश उम्र से, बने कोई रात नयी I 

थोड़ी सी याद कर ले , गुज़रे मुहब्बत के नाते,  
मन की चदर को ओढ़, जी लम्हों के रिश्ते,  
मोती आंसू के किरणो से , तू तारों को सजा , 
आसमानके छत पे , तू फिर घर तो बसा I

रचना : प्रशांत 

Saturday, 8 August 2015

नज़रों से इनायत करने वाले...


चित्र साभार :https://pixabay.com/en/eyes-woman-fashion-beautiful-iris-586849/

नज़रों से इनायत करने वाले,
यूँ खामोश क्यूँ रहते हो,
जब नज़र की ज़ुबाँ,
बेआबरू नज़रों को नज़राना हो I

क्यूँ इन खामोशियों को नहीं करते,
रिश्तों के  नाम से आज़ाद,
क्यूँ ये कसम देते हो,
के ख़त्म करो नज़रों की ये फरियादI

और फिर क्यूँ  हक़ की नज़रों से,
उलफत के फ़िज़ा बिखरते हो,
जब आहट दिल ऐ मशरूफ,
नज़राना बे-खत ख़तम हो I

रचना : प्रशांत