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क्यूँ कहे दिल के, तू दिल की सुन ,
एक बार फिर अजनबी बन, और दिल की सुन ,
भले हो उम्र के फ़ासले, तो कोई बात नहीं ,
कहाँ खामोश उम्र से, बने कोई बात नयी
कहाँ खामोश उम्र से, बने कोई रात नयी I
थोड़ी सी याद कर ले , गुज़रे मुहब्बत के नाते,
मन की चदर को ओढ़, जी लम्हों के रिश्ते,
मोती आंसू के किरणो से , तू तारों को सजा ,
आसमानके छत पे , तू फिर घर तो बसा I
रचना : प्रशांत
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