Thursday, 28 January 2016

फिर वोही बात -II





क्या कहें के हम आज फिर,
गुम हुए खुद से,
निभाए रिश्ता कितने भी इन गलियों से ,
फिर गुम हुए इनसे I

कुछ आज़ादी इतनी सी, अगर मिल जाती,
जी लेते हम भी एक अपनी पहचान
ना होता एहसास नकामी नासमझकी,
ना होता परछाई  बेवस, कायासे अंजान I

ना हुए कल के, अब हम
ना जुड़ पाए किसी आज से
आदेश हो यारो यह भी केह दे ,
या ना कभी यह भी कह पाये,
एक हसीन वक़्त की सज़ा,
काटे, गुम हुए इनसे,
वोही वक़्त की तलाश मे,
फिर गुम हुए खुद से I




रचना :प्रशांत

Thursday, 21 January 2016

एक खामोश वादा !




धोके मे रहना और ना दे सुकून, 
दिल के ना हो पाना, ना दे सुकून, 
एक कोशिश रब्बा हमसे तू कर ले,
एक घर रोशन हमसे तू कर ले I

यह कोशिश गर हमसे हो पाए,
एक ग़रीब, सीना तान उतर आए, 
तक़दीर बदले, यह रिश्ते ना बदले,
भूल भी जाए, दिल के फिर हो जाए ई

रचना:प्रशांत 

Friday, 8 January 2016

नसीहत मान लो जनाब!

चित्र साभार : http://www.piubenessere.it/wp-content/uploads/2014/06/1367484.jpg

ज़िंदगी तुझे जीना आज भी जारी है,
राह से जुदा यह राही आज भी है, 
ऐ ज़िंदगी, मैं तुम्हे समझ न सका,
तेरे समझदार नासमझ मुझसे रहे I

मुझसे नाराज़ करे बार बार ये शिकायत, 
शिकस्त मेरी कश्ती बाकी और क़यामत, 
क्या ख़ास जी रहे हो जनाब ये ज़िंदगी,
क्या ख़ास आप जुड़े हो, जीकर ये जिंदगी I

सुन भाई नीयत यहाँ देखी नही जाती, 
रिश्ते यहाँ तराजू से नापी नही जाती, 
और कमा ले तो बरकत मिल जाती,
जिंदगी जिेने वालो को खुदा के करीब,
लेकिन इंसान कही नही जाती I

रचना : प्रशांत