ज़िंदगी तुझे जीना आज भी जारी है,
राह से जुदा यह राही आज भी है,
ऐ ज़िंदगी, मैं तुम्हे समझ न सका,
तेरे समझदार नासमझ मुझसे रहे I
मुझसे नाराज़ करे बार बार ये शिकायत,
शिकस्त मेरी कश्ती बाकी और क़यामत,
क्या ख़ास जी रहे हो जनाब ये ज़िंदगी,
क्या ख़ास आप जुड़े हो, जीकर ये जिंदगी I
सुन भाई नीयत यहाँ देखी नही जाती,
रिश्ते यहाँ तराजू से नापी नही जाती,
और कमा ले तो बरकत मिल जाती,
जिंदगी जिेने वालो को खुदा के करीब,
लेकिन इंसान कही नही जाती I
रचना : प्रशांत
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