Thursday, 24 March 2016
Friday, 18 March 2016
इस्तीफा से पहले!
खुद तू चाहे, नये नगरीमे आ बस पाए ,
अलग क़ानून के दायरे, जी फिर जाए ,
सुकून तू पाए, सुकून खरीद तू पाए ,
ज़िंदगी तू तलाशे , और ज़िंदगी तुझे पाए ,
फिर क्यू यह उलझन , जब वो दिन आए I
नाव तू बदले, मंज़िल और करीब लाए,
फिर क्यू चेहरा दिखे, सोच ये गहरा,
आप से हारा, ना अपनो के दे सहारा,
दो शहर मे बस्ती है तेरा,
दो नाव का कश्ती है तेरा I
रचना : प्रशांत
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