जिंदगी की सौदा तैर ना हो पाया...
मुफ़्त मे शायरी यू निकल आया
हँसते हैं खुद पे...
कोई मोल ना लग पाया...
ना खरीददार नज़र आया..
ना कोई मोल लग पाया
कोई कसर नही छोड़ा...
ज़मीर से सौदा कर भिड़ा...
दूर तक पंचनमा लिखा और मुड़ा...
नसीब उनमे ना थी भला..
पंचनमा कोरा काग़ज़ सा जला...
रचना : प्रशांत
मुफ़्त मे शायरी यू निकल आया
हँसते हैं खुद पे...
कोई मोल ना लग पाया...
ना खरीददार नज़र आया..
ना कोई मोल लग पाया
कोई कसर नही छोड़ा...
ज़मीर से सौदा कर भिड़ा...
दूर तक पंचनमा लिखा और मुड़ा...
नसीब उनमे ना थी भला..
पंचनमा कोरा काग़ज़ सा जला...
रचना : प्रशांत
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