ख्वाइश के मंज़र मे, डूबता जाए जहाँ,
दुनिया का हुआ, दुनिया को चाहा पर दुनिया ना चाहा I
पहचान बनाया, दुनिया बनाया ना जुड़ पाया,
ना जुदा रहपायाा पर दुनिया ना चाहा ी
जहाँ से मिला, जहाँ की शाया जहाँ से फिदा,
जहाँ से जुड़ा इस जहाँ के मौला पर दुनिया ना चाहा I
रचना :प्रशांत
दुनिया का हुआ, दुनिया को चाहा पर दुनिया ना चाहा I
पहचान बनाया, दुनिया बनाया ना जुड़ पाया,
ना जुदा रहपायाा पर दुनिया ना चाहा ी
जहाँ से मिला, जहाँ की शाया जहाँ से फिदा,
जहाँ से जुड़ा इस जहाँ के मौला पर दुनिया ना चाहा I
रचना :प्रशांत