मुझे ये खबर थी,
के बेवफाई तुझमें थी,
पर मेरे दिल पे तेरी आँखों का पहरा था,
था एक लगाव जो सागर से गहरा था I
कुछ तो मुझे हुआ था ,
के तेरे न होने से एक डर था,
चाहता था तुझे हर पल मेरे सीने में,
तेरे बिना न था मज़ा कुछ जीने में I
आजमाने अपनी किस्मत,पास गए तेरे,
दिल हारे, नींदें हारी,
फिरे गलियों में आवारा मुरीद बन तेरे I
हुआ कुछ यूँ के न वक़्त साथ चल पाया,
न तेरी खबर रख पाया I
सिलसिला ऐ बेखुदी में ग़ुम,
नज़रों को दिखते सिर्फ तुम I
अब ये आलम है दीवानगी का,
के लगता है मौसम आ गया रवानगी का I
रचना : प्रशांत
के बेवफाई तुझमें थी,
पर मेरे दिल पे तेरी आँखों का पहरा था,
था एक लगाव जो सागर से गहरा था I
कुछ तो मुझे हुआ था ,
के तेरे न होने से एक डर था,
चाहता था तुझे हर पल मेरे सीने में,
तेरे बिना न था मज़ा कुछ जीने में I
आजमाने अपनी किस्मत,पास गए तेरे,
दिल हारे, नींदें हारी,
फिरे गलियों में आवारा मुरीद बन तेरे I
हुआ कुछ यूँ के न वक़्त साथ चल पाया,
न तेरी खबर रख पाया I
सिलसिला ऐ बेखुदी में ग़ुम,
नज़रों को दिखते सिर्फ तुम I
अब ये आलम है दीवानगी का,
के लगता है मौसम आ गया रवानगी का I
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