चित्र साभार : https://www.flickr.com/photos/davedugdale/5096953439
क्यू लगे आज तनहा तनहा,
ग़मे फुरसत मे,
क्यू लगे आज तनहा तनहा,
सारे आम, जहाँ जाम ने दी पनाह
क्यू लगे आज तनहा तनहा I
जिस शाम की रंग मे
अकबरे शहंशाह की ज़ुस्तजू थे आप,
आप की कमी, महफिले शाम हो ज़िक्र,
लगे आज वो महफ़िल तनहा तनहा,
जाम-ए-आतिश लगे तनहा तनहा,
उम्र की लिहाज, आपं सुनाए दास्तान,
मुद्दा'-ए साक़ि हम रहे मेह्फूज ,
बेनाम जीए तनहा तनहा
अंजान बने , रोशन आप हुए
पर्दे का आशियाना हम जिए ,
जाम हो ख़त्म तनहा तनहा I
छोड़े हम एक प्याला आप के नाम
काँच की आगोश मे छोड़े दिल- ऐ-नादान
तस्वीर आपकी झलके, मुस्कुरा के बोले
बेकसी-हा-ए-शब-ए-हिज्र , जो लिख ना पाए I
शीशे मे ना देख परछाई, बेजुबान आप बोले,
ख़त्म खामोशी एक जाम-ए-लापता यू उतरे,
ख़तम हो जाम-ए-शाम रंग ना बिखरे,
तेरे तसबीर, तुझे छोड़े, शीशे मे दिखे,
ख़त्म हो जन्नत की तलाश ,
शीशे में दिखे तुझसे मिलने की आस,
और जीने का विश्वास I
रचना: प्रशांत
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