छूट गया जीना, कबका मेरे यारो ..
संभले हुए यारो, जलते हुए यारो
मन उड़ जाए, आसीकी उतर आए
आवारा जग ढूंदे, लापता जाग जाए I
यह नशियत और ना दो हुज़ूर
इख्तियार, इस्क़ हुकूमत गया
बहुत हो गया, मन का नैया
मन की धारा ये उमर का घेरा
ना जाने दिल, दिल है कन्हैया I
दिल चुपके तरसे और चाहे
कही घूम आए, कही गुम जाए
कोई हिसाब ना माँगे, खो जाए
हसीन पल चुपके फ़िर आए I
क्या बताए दिल कब कब चाहे
कहानी बने, इतिहास ना लिख पाए
ना कोई रिश्ते इतिहास नज़र आए
भूले कुच्छ पल आए, महफ़िल सजाए
बहकाए, महकाए, नज़राना दे सताए I
रचना : प्रशांत
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