कुछ पल बस तू यूँ गुज़ार दे,
गम तोल दे, यह किस्मत पे छोड़ दे,
हुआ यह क्या हिसाब अब ना कर,
दो पल उधार दे, साथ दे, हाथ दे ,
यह भी हैं ज़िंदा , इनका भी का साथ दे.....
भले पहचान से परे, मंज़िल से हारे,
कितने हैं यहाँ, जी जाते हैं यहाँ,
जहाँ के खोज, जहाँ से जुदा,
पर मुस्कुराते तेरे राहों मे सदा...
एक पल यूँ गुज़ार दे,
एक पल उनको भी दे,
एक पल तू जहाँ देख,
एक पल तू जहाँ से सीख,
अपने हिसाब से तोड़ तू निकाह,
यह हिसाब खुदा को भी दिखा.
पनाह दे और ले तू पनाह,
यह भी है अपने, हिसाब अपनोमे बना....
रचना : प्रशांत
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