Sunday 8 February 2015

लंबी खामोशियाँ...

लंबी खामोशियाँ ,
कभी मुझसे ये मुझे जोड़ दे, 
और कभी मुझे 
मेरे दुनिया से अलग कर दे I 

ठिकाना याद ना हो,
पर खत यादो मे भरी हो ,
यह ज़रूरी तो नही ,
इसका भी हिसाब हो I 

रचना: प्रशांत 

4 comments:

  1. ठिकाना याद ना हो,
    पर खत यादो मे भरी हो ,
    यह ज़रूरी तो नही ,
    इसका भी हिसाब हो I
    सुन्दर शब्द

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    1. धन्यवाद योगी सारस्वत जी !

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  2. Silence speaks its own language and it is often deeper than words.

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