यह दौड़ है ज़िंदगी का,
थमने का नाम न ले पल भर का,
चाहे कितने भी आगे जाओ,
कुछ आगे फिर भी बाकी रह जाए I
क्या हासिल किया,
हिसाब इसका ख़त्म ना हो जनाब,
मज़दूर अपने रफ़्तार का,
और तेज़ भागे जनाब I
बस एक आदत है,
भागने और बस भागने की,
खोज में दूर के कोहिनूर की,
बस आदत से भागें हम,
भागें बस खुद से भागें हम I
ना आराम दें खुदको,
ना सवाल करें खुद से,
ना अपने को गले लगाएँ I
बस समय से भागें,
कभी समय के आगे,
कभी समय के पीछे,
कभी दो पल ना रुकें,
कभी अपनो से समय न माँगें I
थमने का नाम न ले पल भर का,
चाहे कितने भी आगे जाओ,
कुछ आगे फिर भी बाकी रह जाए I
क्या हासिल किया,
हिसाब इसका ख़त्म ना हो जनाब,
मज़दूर अपने रफ़्तार का,
और तेज़ भागे जनाब I
बस एक आदत है,
भागने और बस भागने की,
खोज में दूर के कोहिनूर की,
बस आदत से भागें हम,
भागें बस खुद से भागें हम I
ना आराम दें खुदको,
ना सवाल करें खुद से,
ना अपने को गले लगाएँ I
बस समय से भागें,
कभी समय के आगे,
कभी समय के पीछे,
कभी दो पल ना रुकें,
कभी अपनो से समय न माँगें I
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रचना: प्रशांत
रचना: प्रशांत