Tuesday, 23 February 2016

रिहाई तुझे नसीब हो!



क़ैद किसी और दुनिया मे तू भी,
बना ले दुनिया जी कर रिश्ते तू भी,
हर पहचान तेरी तुझे लगे चेहरेेे अपने, 
निभाले रिस्ते वो जाने या रहे अंजाने I 

मन हो अगर आसमान भी छु ले, 
मन की मान और मन बना ले, 
दायरे मे रिश्ते, अंजान निकल तू प्यारे, 
सुकून हो राहे , जि अलग बाकी सारे I

रचना: प्रशांत 

Thursday, 11 February 2016

नौकरी : क्या यही तेरा पहचान!



                                                         

यह पहचान की रिश्ते कब तक यारों
जो तुमसे पुराने हो भी जाए यारों 
और भी ख्वाईशे दस्तक दे याद आए 
दर्पण मे दिखे, गुम वोही रह जाए I 

अब जी लो, अपने बाकी तेरे और भी पहचान, 
मासूमियत वो पहचान, इंसानी वो पहचान,
आजमा ले जीतने बाकी रूह की ग़ज़ल,
लहराने दे बह जाने दे, महफिले माहौल,
ख़तम हो जिनमे जंग और उलझन,
नफ़रत जाए दफ़न, सॉफ दिखे दर्पण I

Sunday, 7 February 2016

दिल की दास्तान दिले अंजान क्यू बने

दिल की दास्तान दिले अंजान क्यू बने, 
जो ना दे पनाह, वफ़ा उनसे क्यू बने, 
क्यू ना कदम कही और, मूड ना जाए,
क्यू ना ये इश्क़ नाकाम , मर ना जाए I 

जज़्बात क़ैद कोठे मे लगे , दिल बहलता रहे, 
दिल  क़ो जो लगे रिश्ता , वो मंज़र दिख ना पाए,  
बने महबूब की तवायफ़, नसीब इतना ना होए, 
घुँगरू छमछम इशारों की मोल, दूर और जाए I 

रचना : प्रशांत