दिल की दास्तान दिले अंजान क्यू बने,
जो ना दे पनाह, वफ़ा उनसे क्यू बने,
क्यू ना कदम कही और, मूड ना जाए,
क्यू ना ये इश्क़ नाकाम , मर ना जाए I
जज़्बात क़ैद कोठे मे लगे , दिल बहलता रहे,
दिल क़ो जो लगे रिश्ता , वो मंज़र दिख ना पाए,
बने महबूब की तवायफ़, नसीब इतना ना होए,
घुँगरू छमछम इशारों की मोल, दूर और जाए I
रचना : प्रशांत
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