Tuesday, 23 February 2016

रिहाई तुझे नसीब हो!



क़ैद किसी और दुनिया मे तू भी,
बना ले दुनिया जी कर रिश्ते तू भी,
हर पहचान तेरी तुझे लगे चेहरेेे अपने, 
निभाले रिस्ते वो जाने या रहे अंजाने I 

मन हो अगर आसमान भी छु ले, 
मन की मान और मन बना ले, 
दायरे मे रिश्ते, अंजान निकल तू प्यारे, 
सुकून हो राहे , जि अलग बाकी सारे I

रचना: प्रशांत 

2 comments:

  1. मन हो अगर आसमान भी छू ले ...बेहद सुंदर ।

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  2. आभार मधुलिका जी

    प्रशांत

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