यह शहर कैसा,
शराब बदनाम यारों,
ख्वाइसों मे ज़िंदा,
दफ़न हुकूमत मे यारों...
गम ना कर ,
चाहनेवाले तेरे इस ,
शहर मे आज भी ज़िंदा,
और उनकी चाहत से
यह शहर आज भी है ज़िंदा..
रचना : प्रशांत
शराब बदनाम यारों,
ख्वाइसों मे ज़िंदा,
दफ़न हुकूमत मे यारों...
गम ना कर ,
चाहनेवाले तेरे इस ,
शहर मे आज भी ज़िंदा,
और उनकी चाहत से
यह शहर आज भी है ज़िंदा..
रचना : प्रशांत
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