Thursday 5 November 2015

आज क्यू फिर यह लगे...




आज क्यू फिर यह लगे,
मैं आज़ाद मिलूं  मेरी तन्हाई से, 
के फिर आप आए ना आए 
मैं आज़ाद मिलूं मेरी तन्हाई से I

क्यूँ मानूं  की  मेरा इम्तेहान  बाकी है,
आपकी नज़रों से ,
क्यों ना मैं खामोश चलूँ,
और खुदा से भी दूर चलूँ I

मेरा वो आशियाना है वहाँ,
जो तेरे साये  से है  दूर,
खुदा जहाँ कभी आया करते हैं,
जब वो हो बन्दों से मज़बूर I

रचना: प्रशांत 

1 comment:

  1. क्यूँ मानूं की मेरा इम्तेहान बाकी है,
    आपकी नज़रों से ,
    क्यों ना मैं खामोश चलूँ,
    और खुदा से भी दूर चलूँ I
    बहुत शानदार !

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