Thursday 5 November 2015

जाने क्यू आज ऐसे लगे...



चित्र साभार : http://img00.deviantart.net/4e8a/i/2010/038/0/8/unveiling_the_shadow_world_by_yamaha_neko.png


जाने क्यू आज ऐसे लगे,
मेरे इंतेज़ार की इंतहाँ है, 
जाने कितनी शामें  बित गयीं,
फिर मेरे इंतेहा की इंतेज़ार है I

बात इतनी सी थी,
जो वो नासमझ रूठे हम से, 
इतनी सज़ा दे वो खुदको, 
की हम रूठ चले I

साथ वो अपने निभाते चले,
रिश्तों से आज़ाद रिश्ते निभाते चले, 
खुद वो आग मे जलते रहे,
खामोश आग रूह मे लिए, 
हम राह मे जले और चले  I 

रचना: प्रशांत 

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