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सियाही और सुराही जो साथ साथ चले ,
ख्वाइशें पर्दों में वाह वाह जो मिले,
इशारे हमराही न समझ पाएं ,
उनकी नासमझी की तारीफ़ हम भी करें I
जितने हमराज़ हमारे ,दुसरे आहें भरें,
तमन्ना रहे बाकी, खाली खाली रहे सुराही,
जैसे रात बिना चाँद,
हम उस रात की हम क्या बात करें I
थोड़े से ऐतबार की जो बात करें,
हमनाज़ भी ऐतराज़ ही करें I
ख्वाब जो बार बार निखरे इन पैमानों पे वो नाज़ न करें,
की ख़्वाब की ज़िन्दगी पैमानों में मय के थमने भर है I
मुसाफिर अशिआना तलाशने जो चला,
अपनी महफ़िल को भी टांग काँधे चला I
आँखों के प्यालों में हमें जीने दो,
साथ साकी को भी आप आने दो ,
आज सियाही और सुराही को मिल जाने दो,
आज दिल को जिगर में पिघल जाने दो I
रचना: प्रशांत पांडा
रचना: प्रशांत पांडा
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