मैं फूल हूँ पल दो पल का
खिलती हूँ रात के अकेले में
ख़ुशबू बिखेर क्षण भर मात्र हवा में
लावारिश जाती हूँ गिर फिर किसी कोने में।
कोई तो समेटे मुझे सुबह हो जाने पर
बनाए मुझे किसी माला का शोभा
अर्पण पूजा की थाली में कर
सफल करे मेरा यह छोटा सा जीवन।
मैं फूल हूँ
धरती में समाने के लिए
कोई देखे न देखे मैं खिलती रहूँ
किसी की यादों में ही महकूँ
चाह नहीं गर्दिश की
ना कोई गंगा की तरंग की।
रचना: मीरा पाणिग्रही
रचना: मीरा पाणिग्रही
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