आज निकल पडे टेलिफोन लगाए,
कुछ अतीत के खोज मे,
कुछ दोस्ती कुछ शौक अंजाने ,
यारोंसे मिलने और यारी निभाने I
अफ़सोस था मन मे की,
यह कदम पहले क्यूँ ना उठे,
एक कदमकी दूरी पार ना सके,
जब जंजीर से बँधे हम ना थे I
आज हमे जवां होना था,
जवानी के मेले मे घुलना था ,
यारोंसे कुछ तो थी सिकायत ,
इस को भूल फिर मिल ना था I
भुबनेश्वर शहर लगे अजनबी,
जब यादों से बिछुड़े इनकी छबि,
ज़िंदा हे यतीम या धन बेसाहारा,
जब यारी गवाई, ये पल ना आई I
रसा, रंजीत, कुल और सत्यजीत
डीडी, प्रशांत फिर जुड़े जो अतीत
ईरादे नेक तो पल बने अलबेला
उमर की अँकेड़े को पीछे धकेले I
कुछ अतीत के खोज मे,
कुछ दोस्ती कुछ शौक अंजाने ,
यारोंसे मिलने और यारी निभाने I
अफ़सोस था मन मे की,
यह कदम पहले क्यूँ ना उठे,
एक कदमकी दूरी पार ना सके,
जब जंजीर से बँधे हम ना थे I
आज हमे जवां होना था,
जवानी के मेले मे घुलना था ,
यारोंसे कुछ तो थी सिकायत ,
इस को भूल फिर मिल ना था I
भुबनेश्वर शहर लगे अजनबी,
जब यादों से बिछुड़े इनकी छबि,
ज़िंदा हे यतीम या धन बेसाहारा,
जब यारी गवाई, ये पल ना आई I
रसा, रंजीत, कुल और सत्यजीत
डीडी, प्रशांत फिर जुड़े जो अतीत
ईरादे नेक तो पल बने अलबेला
उमर की अँकेड़े को पीछे धकेले I
रचना: प्रशांत
भुबनेश्वर शहर लगे अजनबी,
ReplyDeleteजब यादों से बिछुड़े इनकी छबि,
ज़िंदा हे यतीम या धन बेसाहारा,
जब यारी गवाई, ये पल ना आई I
रसा, रंजीत, कुल और सत्यजीत
डीडी, प्रशांत फिर जुड़े जो अतीत
ईरादे नेक तो पल बने अलबेला
उमर की अँकेड़े को पीछे धकेले I
बहुत सटीक और रोचक
धन्यवाद योगी सारस्वत जी !
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