चित्र साभार : http://www.buenosaires-berlin.com/good-relationship-between-the-traveler.html
हम तो मुसाफिर हैं,
जो हो कर भी नहीं,
आज यहाँ कल वहां,
आज किसी के करीब,
कल किसी से दूर,
आज अपनेपन की सौगात,
कल बिछुड़ने को मज़बूर I
हमें मंज़िलों की परवाह हो क्यों,
अपना तो है रास्तों से वास्ता,
हमें महफ़िलों की रौशनी से क्या,
अपना तो सूरज की रौशनी से ,
तपते सपनो से है वास्ता I
हम तो मुसाफिर हैं,
हम ठिकानो में नहीं,
निशानों में बसते हैं
हम तो मुसाफिर हैं
हम मयखानों में नहीं
हम नज़रों के पैमानों में बसते हैं I
रचना: प्रशांत
jaaye raahi kahaan.. jaane manzil kahaan..
ReplyDeleterishton ke khoj mein.. haan mai bhi gumshuda..
Lovely! thanx for visiting the blog.
ReplyDeleteम तो मुसाफिर हैं,
ReplyDeleteहम ठिकानो में नहीं,
निशानों में बसते हैं
हम तो मुसाफिर हैं
हम मयखानों में नहीं
हम नज़रों के पैमानों में बसते हैं I
सुंदर पंक्तियां।
धन्यवाद अंकुर जी
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