कोई क्या सोचे, यह क्यूँ हम सोचें,
कोई गुनाह जब हमे ना दिखे,
किसी के ठेस, क्यूँ हमे सताए
क्यूँ अफ़सोस बार बार जताए I
कितनी सदियाँ यूं बीत जाए,
दुनियादारी से खुद खो जाए,
मंज़ील आ पहुँचे, कोई ना आए,
फरियाद फिर खाली खाली रह जाए I
कोई गुनाह जब हमे ना दिखे,
किसी के ठेस, क्यूँ हमे सताए
क्यूँ अफ़सोस बार बार जताए I
कितनी सदियाँ यूं बीत जाए,
दुनियादारी से खुद खो जाए,
मंज़ील आ पहुँचे, कोई ना आए,
फरियाद फिर खाली खाली रह जाए I
रचना: प्रशांत
कितनी सदियाँ यूं बीत जाए,
ReplyDeleteदुनियादारी से खुद खो जाए,
मंज़ील आ पहुँचे, कोई ना आए,
फरियाद फिर खाली खाली रह जाए I
सुन्दर भावोक्ति प्रशांत जी