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यह इंतेहा, आज भी है बाकी,
संभाले खुद को जितना,
यह धोका आज भी है बाकी,
वज़ूद की तसल्ली उनको भी है
धोके मे सादगी इधर मे भी है I
यह वर्कप्लेस पॉलिटिक्स ,
अजब सा है ये इनसानी सर्कस ,
इशारो पे नाचनेवाले बने सितारे,
शीशे में खुद को यह ना उतारे,
ईमान से सब ये खुदा के प्यारे
तुम्हे इल्ज़ाम बार बार ये दे
तुम्हे ना परखे,कोई सबूत ना दे I
रचना : प्रशांत
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