उस शाम पल खरीदने की हिसाब जुड़ रही थी
क्या बताएं की कैसी वो शाम थी,
कुछ ना था अलग पर वो एक अलग शाम थी I
साल बीत गयी, सवाल आज भी था,
वो हसीन पल जो हमे हासिल था,
ख़यालो मे ज़िंदा पर रूबारू ना थाI
जो गवाए यह हिसाब आ रही थी ,
बचपन से जवानी फिसली जा रही थी ,
पैसे के तमाशा मे पल जुदा जा रही थी,
पल खरीदने की हिसाब जूड रही थी,
पल बेमिसाल, पैसे बेकार बिकती थी ई
रचना : प्रशांत
क्या बताएं की कैसी वो शाम थी,
कुछ ना था अलग पर वो एक अलग शाम थी I
साल बीत गयी, सवाल आज भी था,
वो हसीन पल जो हमे हासिल था,
ख़यालो मे ज़िंदा पर रूबारू ना थाI
जो गवाए यह हिसाब आ रही थी ,
बचपन से जवानी फिसली जा रही थी ,
पैसे के तमाशा मे पल जुदा जा रही थी,
पल खरीदने की हिसाब जूड रही थी,
पल बेमिसाल, पैसे बेकार बिकती थी ई
रचना : प्रशांत
साल बीत गयी, सवाल आज भी था,
ReplyDeleteवो हसीन पल जो हमे हासिल था,
ख़यालो मे ज़िंदा पर रूबारू ना थाI
गहरे शब्दों में लिखी शानदार रचना ! सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद योगी सारस्वत जी!
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