Wednesday 15 April 2015

हम तो मुसाफिर हैं...




चित्र साभार : http://www.buenosaires-berlin.com/good-relationship-between-the-traveler.html

हम तो मुसाफिर हैं,
जो हो कर भी नहीं,
आज यहाँ कल वहां, 
आज किसी के करीब,
कल किसी से दूर,
आज अपनेपन की सौगात,
कल बिछुड़ने को मज़बूर I 

हमें मंज़िलों की परवाह हो क्यों,
अपना तो  है रास्तों से वास्ता,
हमें महफ़िलों की रौशनी से क्या,
अपना तो सूरज की रौशनी से ,
तपते सपनो से है वास्ता I 

हम तो मुसाफिर हैं,
हम ठिकानो में नहीं,
निशानों में बसते हैं 
हम तो मुसाफिर हैं 
हम मयखानों में नहीं
हम नज़रों के पैमानों में बसते हैं I 

रचना: प्रशांत 

4 comments:

  1. jaaye raahi kahaan.. jaane manzil kahaan..
    rishton ke khoj mein.. haan mai bhi gumshuda..

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  2. Lovely! thanx for visiting the blog.

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  3. म तो मुसाफिर हैं,
    हम ठिकानो में नहीं,
    निशानों में बसते हैं
    हम तो मुसाफिर हैं
    हम मयखानों में नहीं
    हम नज़रों के पैमानों में बसते हैं I

    सुंदर पंक्तियां।

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  4. धन्यवाद अंकुर जी

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