Friday 16 October 2015

ये कैसी दौड़ है...


चित्र साभार :www.dreamstime.com

ये कैसी दौड़ है,
ये क्या किनारा  है,
लाशें जहाँ ज़िंदा हों,
ईमान मुर्दा कफ़न हो I  

किस बात की यह आज़ादी,
मासिक सुविधा की राजनीति,
कुछ भागे रिश्ते छोड़ ,
कुछ बिके कीमत तोड़,
कुछ मेहनत करते कमर तोड़
कुछ चामचा बढ़े नीति तोड़ ,

सलतनत छोटे नवाब का हो,
रफ़्तार डी एन मिरकासिम हो,
चाणक्या चाल शिक्षविदों में  हो,
निगम शासन राशन मे हो I

तो करता है जी की लग जाए आग,
इस दुनिया को और भस्म  हो जाये,
ये जहान अपने बेईमान कदरदान के संग I

तो जी करता है की ढल जाए ये शाम,
कभी सुबह होने को,
के रात की राख में सिसके बेईमानी
कभी होने वाली सुबह में दफन होने को I


रचना : प्रशांत

शब्दों के अर्थ :
सलतनत छोटे नवाब का हो--Promoter
मिरकासिम--Company director
निगम शासन ---Corporate / Institutional Governance
राशन-- Salary Determination, Show-Off

2 comments:

  1. वर्तमान से जूझना अपने मन मस्तिष्क को फोड़ने जैसा है
    आपकी रचना वर्तमान के भयावह सच से लड़ने का साहस देती है
    उत्क्रष्ट प्रस्तुति
    बधाई --

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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    1. आपका मेरे ब्लॉग पे स्वागत है ज्योति जी !
      उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद

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