पल बीत जाए तो ये पल ना आए,
इस बात का गम रहेगा
यारो,
यह पल भी यू हीं बीत
जाएगी,
रात बंजर, बात उदास
जाएगी I
और फिर एक बार चाहत
कर जीने की
चलने की ,गिरने की,
सँभालने की I
अपने सोच को उसके सच
पे छोड़,
क्या होगा कल ये वक़्त
की तराज़ू पे छोड़,
अपनों को अपना बना,खिज़ा
में भी गुल खिला,
कल क्या होगा ये कल
पे छोड़ ,
आज को देता चल हर पल
एक नया मोड़ I
रचना: प्रशांत
अपने सोच को उसके सच पे छोड़,
ReplyDeleteक्या होगा कल ये वक़्त की तराज़ू पे छोड़,
अपनों को अपना बना,खिज़ा में भी गुल खिला,
कल क्या होगा ये कल पे छोड़ ,
आज को देता चल हर पल एक नया मोड़ I
बहुत सुन्दर प्रशांत जी !!
धन्यवाद योगी सारस्वत जी!
Deleteआज को देता चल हर पल एक नया मोड़
ReplyDeleteधन्यवाद राकेश जी!
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete