ऐसा क्यूँ है की तुझे चाह कर भी
तेरा ना हो सका,
तेरी ख्वाइशों की बंदिश से आज़ाद,
मेरा दिल हो ना सका I
यह जिना भी कोई जीना है ,
जब खुद तू ही मुझसे दूर है,
इतनी दूर की ख्यालों में भी ,
आज किसी और का दखल है I
हाँ जब दूसरे कर दिए,
तब फिर तेरी याद आई,
शरण मे आए फिर भी,
तमन्ना बदल ना पाई I
रचना : प्रशांत
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