क्यूँ किसी को ऐतराज़ हो,
ग़र तुझे भले ज़ख़्मो हीं से प्यार हो ,
ग़र तुझे भले ज़ख़्मो हीं से प्यार हो ,
तेरे ज़ख्मों पे तू फिदा हो,
अगर तेरे आँसू से सिंची ,
तेरे कहानी फिर से जिंदा हो ,
तो क्यूँ किसी को ऐतराज़ हो ?
...........................................
कभी अलग मिलकर तू देख ,
कटी पतंग के डोर छू कर तू देख ,
टूटे शीशे को जोड़कर तू देख,
कभी किनारो से दूर डूब कर तू देख,
जो दिखे उसे महसूस कर तू देख I
.................................................
हज़ार चेहेरे तेरे और दिखे ,
ख्वाबो मे जो ना दिखे ,
नज़र मिलाए तुझे दिखे ,
क्या महबूब की चहेरे से
नक़ाब उठ ना पाए ,
या कोई चेहरा
तु आज देख ना पाए I
###
रचना : प्रशांत
No comments:
Post a Comment