Monday, 16 February 2015

डर के रिश्ते!

डर के रिश्ते!

जब रहे ना प्यार अपने करम के धरम से ,
कुछ ना मिले मुझे डर डर के जीने से,
क्यू प्यार चाहे, अपने अपनो से रहे,
जब तक़दीर हमारा  लिखा  बदल ना पाए,
प्यार और डर यू हीं , साथ साथ जागे,
रिशतों  को नाम देने से, डर और लगे,
रिश्ते  जो अब रंग देने से रहे ,
उसे मुँह मोड़ देना आप भी चाहे I

ना समझ प्यार, हर लगाव को तुम,
कहीं  तुम से ये डर, ना करे प्यार गुम,
रिश्ते उलझन ना हो, यह डर सोते हुए भी  जागे,
कही रिश्ता, रिश्ता हीं   रहे इसका डर और लगे I


रचना : प्रशांत

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