क्यूँ ना एक बार फिर ,
प्यार मिले मुड़ के ,
हम तो प्यासे हैं,
तर हो जाएंगे, एक बार फिर जुड़ के I
एक सुबह ऐसी हो फिर से ,
जो लगे थोड़ी अलग ,
खुशबु बिखरे फूलो से ,
मन जाए सुलग,फिर से I
क्यूँ ना एक दिन आए फिर से,
जो किये रहे हमें दिन भर बेचैन,
हर पल बस हम देखें शाम की हीं राह ,
जब हो दीदार उसका तभी मिले हमें चैन I
क्यूँ ना एक शाम आए फिर से ,
जब हम साथ साथ चलें मिल के,
हो हाथों में हाथ उसका
लब रहें खामोश पर दिल बातें करे खुल के I
क्यों न एक रात आये फिर से,
जो सजाये तड़प की बारात फिर से,
पर रखे जो रात के जतन को अपने ही अंदर,
जैसे सीपी सोती हैं गहन समंदर I
प्यार मिले मुड़ के ,
हम तो प्यासे हैं,
तर हो जाएंगे, एक बार फिर जुड़ के I
एक सुबह ऐसी हो फिर से ,
जो लगे थोड़ी अलग ,
खुशबु बिखरे फूलो से ,
मन जाए सुलग,फिर से I
क्यूँ ना एक दिन आए फिर से,
जो किये रहे हमें दिन भर बेचैन,
हर पल बस हम देखें शाम की हीं राह ,
जब हो दीदार उसका तभी मिले हमें चैन I
क्यूँ ना एक शाम आए फिर से ,
जब हम साथ साथ चलें मिल के,
हो हाथों में हाथ उसका
लब रहें खामोश पर दिल बातें करे खुल के I
क्यों न एक रात आये फिर से,
जो सजाये तड़प की बारात फिर से,
पर रखे जो रात के जतन को अपने ही अंदर,
जैसे सीपी सोती हैं गहन समंदर I
रचना: प्रशांत
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