जब देखा आपकी तस्वीर को,
तो भूल गए हम अपनी तक़दीर को I
उमर ने तराशा आपको अपनी नज़र की बेक़रारी में,
और आपकी ख्वाइश लिए आँखों में
रात काटी हमने गज़र के ग़मख़्वारी में I
एक अज़ीब सी कश्मकश हर वक़्त रहती है,
के कह दें आपको की हाँ आपमें में हीं मेरी जान बसती है,
पर लगता है डर की कही आप ऐ न कह दें की
आपकी दुनिया कहीं और बसती है I
रचना : प्रशांत
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