Thursday 22 October 2015

पति पत्नी और वो!



चित्र साभार : http://www.in.com/tv/movies/star-gold-64/pati-patni-aur-woh-1978-26436.html



आतीत की कोई सच्चाई,
ना दिखे अब जिसकी परछाई,
सीने की कब्र में जो महफूज़ हो,
यादों के किसी कोने मे जो ज़िंदा दफ़न हो,
जाने क्यों ये दें उनको सज़ा,
जो हैं इस दिल के पिंजरे में कैद और ज़िन्दगी से ज़ुदा I

हमने जाने कितनी बार है ये कहा,
की जो बीत गया वह रीत गया,
आज हम तुमसे ज़िंदा रहते हैं,
जो था, वो कभी था,
आज हम तेरे सजदे करते हैं
 
पर हाय ज़ालिम ये गुस्सा तेरे नाक का,
होश उड़ा देता हैं मेरे दिले बेबाक का,
तुम ये कहती हो के हम तुम्हारे नहीं उनके हैं,
मेरा  दिल बिखर जाता हैं ऐसे जैसे
ये शाख से ज़ुदा हुए बेजान तिनके हैं I

हम तेरे गुलाम ये कहते हैं,
के अब वास्ता भी तुमसे,
के अब रास्ता भी तुमसे,
पर तुम लगाते हो बेवफाई का इलज़ाम हमपे,
देते हो धमकी अलगाव की, बिखराव की हमसे I

पर हमने ये ठाना हैं,
सात फेरों के सातों वचन निभाना हैं I
तो क्या हुआ ग़र
तूने कल रात ही मुझे बेवफा कहा है,
और जो कनस्तर फेंका था मुझपर,
वो आँगन में ठिठका पड़ा है I

तेरे हैं तेरे रहेंगे,
पर एक बार जो इस ,
दिल में उतर आया था,
उसे भी कभी कभार  झांकेंगे, ताकेंगे,
पर खुदा की कसम,

तुम्हे भनक भी होने देंगे

रचना : प्रशांत 

2 comments:

  1. पर हमने ये ठाना हैं,
    सात फेरों के सातों वचन निभाना हैं I
    तो क्या हुआ ग़र
    तूने कल रात ही मुझे बेवफा कहा है,
    और जो कनस्तर फेंका था मुझपर,
    वो आँगन में ठिठका पड़ा है I
    ​आज के कथित भागदौड़ वाले समय में जो अपने रिश्तों को बचाकर रख पाये सही मायनों में वो सफल है !! शानदार पोस्ट

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  2. उत्साहवर्धन के लिए
    धन्यवाद योगी सरस्वत जी !

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