धुँधली सी तस्वीर और हल्की सी आवाज़,
कभी सोने न दे मुझे नींद में,
वक़्त खामोश और नज़र खुली है ,
कुछ मौत और कुछ ख्वाब के इंतज़ार में I
हलकी सी छुअन जो आधी महसूस हो ,
और दर्पण जो कफ़न धीरे से हटाये,
तस्वीर फिर भी आधी सी दिखे ,
खामोश इशारे समझ ना पाएं I
शाम डूबे अपनी ही रंग में ,
रात बताये एक अलग सी पहचान ,
सांस कुछ बाकी , धीमी है नज़र ,
पर न खत्म हो इस राज़ का सफर I
रचना : प्रशांत पांडा
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